उस समय सेवड़ासिंघा अपने महल की छत पर ध्यानस्थ बैठा हुआ था। उसको क्या पता था कि उसकी मृत्यु सामने आ रही है। उसने अपनी ओर आते हुए विशाल शिलाखण्ड की सनसनाती हुई आवाज सुनी तो आँखें खोल कर देखा। वह पल भर में समझ गया कि मृत्यु सिर पर आ चुकी है। अपनी तन्त्रविद्या से उस विशाल शिलाखण्ड को रोकने का प्रयास भी किया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। हवा में चक्कर काटता हुआ शिलाखण्ड आया और तीव्र गति से गिर पड़ा सेवड़ासिंघा के ऊपर। उसके मुँह से एक दर्दनाक चीख निकली। मरते-मरते शाप दिया उसने – रानी रत्नावली, तुमने छल से मारा है मुझे। मैं अपनी तन्त्र साधना का उपयोग करते हुए शाप देता हूँ कि तुम्हारा यह नगर कल का प्रातःकाल न देख सकेगा। कोई प्राणी नहीं बचेगा इस नगर का। कल के बाद इस नगर में कभी कोई नहीं रह सकेगा।
इस पुस्तक के लेखक

अरुण कुमार शर्मा / Arun Kumar Sharma
लेखक परिचय अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिनकी लेखनीं पिछले पचास वर्षों से अनवरत गतिशील हैं। ८ अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे चिन्तक और विचारक का नाम है, जिन्होंने अपने गहन गम्भीर चिन्तन मनन द्वारा भारतीय गह्य विद्याओं और उनके आध्यात्मिक तत्वों के अन्तराल में प्रवेश कर उनके विषय में अपने मालिक विचारों को व्यक्त किया है। अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे सत्यान्चेषी व्यक्ति का नाम है, जिन्होंने योग तंत्र में निहित रहस्यमय सत्यों से परिचित होने के लिए प्रच्छन्न अप्रच्छन्न भाव से विचरण और निवास करने वाले सिद्ध सन्त महात्माओं और योगी साधकों की खोज में सम्पूर्ण भारत की ही नहीं बल्कि हिमालय और तिब्बत के दुर्गम स्थानों की जीवन मरण दायिनी हिम यात्रा की है। अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे साहित्यकार का नाम है, जिन्होंने अपनी सशक्त आध्यात्मिक और दार्शनिक कृतियों से संबंधित समकालीनों को सैकड़ों मील पीछे छोड़ दिया है। विलक्षण प्राञ्जल भाषा, मनोहारी शिल्प आत्मशाही शब्द सज़ा और आकर्षक प्रस्तुति करण उनकी कृतियों का विशेषण है। हजारों पंक्तियों के बीच उनकी पंक्ति को पहचान लेना प्रत्येक वर्ग के पाठकों के लिए सरल और सहज है। और यही वह तथ्य है जो अरूण कुमार शर्मा को अरूण कुमार शर्मा बनाता है।