यह कोई किताब नहीं है, वरन एक यात्रा है और मैं इस यात्रा का साक्षी भर हूँ। प्रेम कितना मोहक, सम्मोहक और मादक होता है.. उसके विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए मैंने यह जाना है। ‘मन पतंग दिल डोर’ को लिखते हुए मैंने महसूस किया है कि मोहब्बत का कोई मौसम नहीं होता। वो जब हो जाए वही उसका मौसम हो जाता है। यौवन जब आता है तो अनेक मधुर एहसास लिए आता है.. उन एहसासों को शब्द मैंने नहीं दिए हैं बल्कि उन्होंने खुद अपने लिए शब्द चुने हैं। हाँ इतना ज़रूर है कि जब वो आए तो पूरे वेग में मैंने उन्हें आने दिया.. मैं कवि के रूप में बाधक नहीं बना। आप जब इस यात्रा से गुज़रेंगे (पुस्तक पढ़ेंगे) तो कृपा कर अपने को रोकना मत… बह जाना इसके साथ…आपको भी उसी रूमानियत और पाकीजगी का एहसास होगा, जैसा मुझे हुआ है। यह पतंग ऐसी है जो हर मौसम उड़ेगी और इसे पढ़कर आपके भीतर का मौसम बदलेगा। आप उसी बारिश से सराबोर होंगे जो कायनात जिस रवानगी और दीवानगी से हमपर उड़ेलती है। — परितोष त्रिपाठी
इस पुस्तक के लेखक

परितोष त्रिपाठी / Paritosh Tripathi
परितोष त्रिपाठी का जन्म 6 फ़रवरी 1989 को उत्तर प्रदेश के देवरिया (जो योगीराज देवरहा बाबा के नाम से प्रसिद्ध है) में हुआ था। इनके पिता स्व0 पं0 रामायण त्रिपाठी अँग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर थे और माँ दमयंती त्रिपाठी एक जूनियर हाई स्कूल की प्रधान शिक्षिका। देवरिया से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के उपरांत ये उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली गए और वहीं थियेटर से दिल लगा बैठे। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी (प्रतिष्ठा) में स्नातक उत्तीर्ण किया और वहाँ से मायानगरी मुंबई आ गए। आज टेलीविजन में यह एक बड़ा नाम बनकर उभरे हैं। साथ ही हिंदी फ़िल्मों में अभिनय और लेखन में भी गंभीरता से लगे हुए हैं। ‘मन पतंग दिल डोर’ इनकी पहली पुस्तक है।