महात्मा ने ध्यान से मेरी ओर देखा और फिर एकबारगी चौंक कर बोले – तुम… तुम… पूर्णानन्द सरस्वती हो न? यह सुनकर आश्चर्य हुआ मुझे! सोचा भ्रम हो गया है महात्मा को। बोला – नहीं महाशय, मैं पूर्णानन्द सरस्वती नहीं हूँ। आपको समझने में गलती हुई है। नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता। मुझसे आपको पहचानने में भूल नहीं हो सकती। पूरे दस वर्षों से इधर-उधर भटक रहा हूँ पूर्णानन्द् तुम्हारी खोज में। चलो, उठो, आश्रम में चलो। महात्मा की बातें सुन कर किंकर्तव्यविमूढ सा हो गया था मैं उस समय। कैसे समझाऊँ उस मतिभ्रष्ट और भ्रमित महात्मा को कि मेरा नाम अरुण कुमार शर्मा है। काशी में रहता हूँ। मेरा अपना परिवार..। मैं कुछ कहूँ उसके पहले ही उस विक्षिप्त महात्मा ने मेरा हाथ थाम कर उठाते हुए कहा – ज़रा अपनी ओर तो देखो, तब सब समझ में आ जायेगा।
उसी क्षण मैंने अपनी ओर देखा। आश्चर्यचकित रह गया मैं। न जाने मेरा स्वरूप और वेशभूषा आदि सब कुछ सन्यासी जैसा हो गया था। यह कैसा परिवर्तन? मुण्डित सिर, शरीर पर रेशमी कषाय वस्त्र, बगल में रुद्राक्ष और स्फटिक की मालाएँ, मस्तक पर त्रिपुण्ड की गहरी रेखाएँ, बगल में कमण्डल और मृगचर्म। हे भगवान्! कैसे हो गया ये सब? कैसे बन गया एक युवा ब्राह्मण पुत्र सन्यासी? अपने आपको देख रहा था मैं बार-बार। विश्वास नहीं हो रहा था मुझे एकाएक हुए इस अविश्वसनीय और विलक्षण परिवर्तन को देखकर।
इस पुस्तक के लेखक

अरुण कुमार शर्मा / Arun Kumar Sharma
लेखक परिचय अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिनकी लेखनीं पिछले पचास वर्षों से अनवरत गतिशील हैं। ८ अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे चिन्तक और विचारक का नाम है, जिन्होंने अपने गहन गम्भीर चिन्तन मनन द्वारा भारतीय गह्य विद्याओं और उनके आध्यात्मिक तत्वों के अन्तराल में प्रवेश कर उनके विषय में अपने मालिक विचारों को व्यक्त किया है। अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे सत्यान्चेषी व्यक्ति का नाम है, जिन्होंने योग तंत्र में निहित रहस्यमय सत्यों से परिचित होने के लिए प्रच्छन्न अप्रच्छन्न भाव से विचरण और निवास करने वाले सिद्ध सन्त महात्माओं और योगी साधकों की खोज में सम्पूर्ण भारत की ही नहीं बल्कि हिमालय और तिब्बत के दुर्गम स्थानों की जीवन मरण दायिनी हिम यात्रा की है। अरुण कुमार शर्मा एक ऐसे साहित्यकार का नाम है, जिन्होंने अपनी सशक्त आध्यात्मिक और दार्शनिक कृतियों से संबंधित समकालीनों को सैकड़ों मील पीछे छोड़ दिया है। विलक्षण प्राञ्जल भाषा, मनोहारी शिल्प आत्मशाही शब्द सज़ा और आकर्षक प्रस्तुति करण उनकी कृतियों का विशेषण है। हजारों पंक्तियों के बीच उनकी पंक्ति को पहचान लेना प्रत्येक वर्ग के पाठकों के लिए सरल और सहज है। और यही वह तथ्य है जो अरूण कुमार शर्मा को अरूण कुमार शर्मा बनाता है।